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'डमरू' को लेकर अभिनेता पद्म सिंह का दावा, गुरु-शिष्‍य परंपरा का उम्‍दा उदाहरण है ये फिल्‍म

'गंगाजल', 'अपहरण', 'चक दे इंडिया', 'द लेजंड ऑफ भगत सिंह' जैसी फिल्‍मों में नजर आ चुके पद्म सिंह की मानें तो युवा निर्देशक राजनीश मिश्रा और प्रोड्यूसर प्रदीप शर्मा ने ने मिलकर फिल्‍म 'डमरू' जैसी शानदार फिल्‍म बनाई है.

  | May 01, 2018 14:30 IST (नई दिल्ली)
भोजपुरी फिल्‍म 'डमरू' रिलीज हो चुकी है, मगर फिल्‍म रिलीज होने से पहले फिल्‍म के अभिनेता पद्म सिंह ने दावा किया था कि ये फिल्‍म भोजपुरी सिनेमा को पवित्र कर देगी. उनका कहना था कि यह फिल्‍म उन लोगों को जरूर देखनी चाहिए, जो भोजपुरी फिल्‍मों से दूरी बनाकर रखते हैं. इस फिल्‍म में गुरु-शिष्‍य परंपरा के अलावा भोजपुरी समाज और संस्‍कृति का उम्‍दा सामंजस्‍य नजर आएगा. आपको बता दें कि फिल्‍म 'डमरू' में पद्म सिंह फिल्‍म की एक्ट्रेस याशिका कपूर के पिता का रोल‍ि नभाएंगे.'गंगाजल', 'अपहरण', 'चक दे इंडिया', 'द लेजंड ऑफ भगत सिंह' जैसी फिल्‍मों में नजर आ चुके पद्म सिंह की मानें तो युवा निर्देशक राजनीश मिश्रा और प्रोड्यूसर प्रदीप शर्मा ने ने मिलकर फिल्‍म 'डमरू' जैसी शानदार फिल्‍म बनाई है. उन्‍होंने हिंदी और भोजपुरी इंडस्‍ट्री के बारे में कहा कि दोनों इंडस्‍ट्री काफी अलग हैं और दोनों का अपना महत्‍व है. जहां तक बात डमरू की है, तो यह भी किसी हिंदी फिल्‍म से कम नहीं है. संवेदना और भाव भंगिमा ही अभिनय की मूल में हैं, जो इस फिल्‍म में बखूबी देखने को  मिलेगी.
 
उन्‍होंने बताया कि ईश्‍वर का महत्‍व भक्ति से है. इसलिए युग बदले, मगर नहीं बदला तो ईश्‍वर के प्रति भक्ति भाव. आराध्‍य उस वक्‍त भी थे और आराध्‍य आज भी हैं. भक्ति हर जगह विद्यमान है. चाहे विवेकानंद की भक्ति हो या द्रोणाचार्य की गुरु-शिष्‍य परंपरा में. ईश्‍वर की भक्ति का न तो अंत हो सकता है और न होगा. उन्‍होंने बताया कि फिल्‍म 'डमरू' के निर्माता प्रदीप कुमार शर्मा हैं, जो खुद भी भोजपुरिया माटी से आते हैं और उनकी सोच भोजपुरी सिनेमा के स्‍तर को उपर उठाना है. इसी सोच के तहत वे भोजपुरिया संस्‍कार, भाषा और मर्यादा के मर्म दुनिया के सामने रखने का प्रयास करते रहते हैं. उनकी इसी सोच की उपज है फिल्‍म 'डमरू'.भोजपुरी फिल्‍मों पर लगते रहे अश्‍लीलता के आरोप पर अपनी बेबाक राय रखी और कहा कि अर्थ में अनर्थ तलाशने पर अनर्थ ही मिलेगा. फूहड़ता की जहां तक बात है, तो फिल्‍म की कहानी समाज के बीच की ही होती है. उन्‍हीं परिवेश को हम पर्दे पर  दिखाते हैं. जिसका मतलब ये कभी नहीं होता है कि हम उसे बढ़ावा दे रहे हैं.